पुणे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि ‘लोभ, लालच और दुश्मनी के जरिए देवी-देवताओं का उपहास अस्वीकार्य है। धर्म प्राचीन है और धर्म की अस्मिता के कारण ही राम मंदिर का निर्माण हुआ। वह उचित है। लेकिन मंदिर की निर्मिती हो रही है इसलिए कई हिन्दुओं का नेता नहीं बन सकता।
डॉ. भागवत ने कहा कि अतीत के बोझ के परिणाम से अत्यधिक पूणा, द्वेष, शत्रुता, संदेह के कारण हर दिन एक नया मानला बाहर निकालने से नहीं चलेगा। सहजीवन व्याख्यानमाला के अंतर्गत डॉ. भागवत ने क्विगुरु
भारत’ विषय पर व्याख्यान दिया।
सहजीवन व्याख्यान श्रृंखला के अध्यक्ष विनय और राजू कुलकर्णी, ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन के निदेशक डॉ. अनंत भागवत इस मौके पर मौजूद थे। मोहन भागवत ने कहा कि भारत भौतिक सुख से नहीं, बल्कि नैतिक सुख से विश्व गुरु बनेगा। भारत में विश्र गुरु बनने की क्षमता है। भागवत ने यह भी विश्वास व्यक्त किया कि यदि भौतिक प्रगति के साथ-साथ नैतिक प्रगति भी हो तो विश्वगुरु भारत सिर्फ एक नारा या सपना नहीं रहेगा, बल्कि अगले २० वर्षों में भारत विश्वगुरु के रूप में नजर आएगा।
उन्होंने कहा कि भारत के प्राचीन, शाश्वत हिंदू राष्ट की उत्पत्ति पर्म तत्व से, सत्य से हुई है। सुष्टि के विज्ञान को
जानकर और विश्व के कल्याण की कामना से राष्ट्र का निर्माण हुआ है। किसी ने लाभ के लिए इस इतिहास को छिपाने की कोशिश की और यह आज भी छिपाया जा रहा है। यह देश परोपकारी प्रवृत्ति का है और यह श्रीलंका, मालदीव
और लीबिया के उदाहरणों से देखा जा चुका है। देश की परंपरा शाश्वत है। तम वो नहीं जो स्वयं को ही सही मानते हैं। साथ ही, हम सबके बारे में श्रद्धा रखने वाले हैं। हालांकि, अगर कोई हमारे देवताओं पर हमला करके, जबरन मतांतर करने की कोशिश करेगा, तो वह नहीं चलेगा। कुछ बाहरी लोग वर्चस्ववाद पर जोर देते हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब हम एक स्वतंत्र देश में रहना चाहते हैं, तो हमें वर्चस्ववाद की भाषा की आवश्यकता क्यों है? डॉ. भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर सामाजिक समरसता, पर्यावरण, परिवार प्रबोधन, स्व का बोध तथा नागरी