गायत्री देवी मिंज की आंखें डबडबाने लगती हैं। इसी बीच उनके बच्चे की रोने की आवाज आती है। अपना दर्द वहीं छोड़कर, बगल में लेटे बच्चें को वो गोद में लेती हैं। सीने से लगाती है, और बच्चा शांत हो जाता है। गायत्री देवी इसके आगे कुछ नहीं कहतीं। लेकिन उनके चेहरे पर आई शिकन सारी कहानी बतला जाती है…..
गायत्री देवी मिंज केवल बानगी हैं। लगभग ऐसा ही हाल उनके जैसे 2,896 और शिक्षकों का है। ये बीएड कैंडिडेट्स हैं। नए साल के मौके पर सरकार ने इनके घरों में तोहफे के रूप में टर्मिनेशन लेटर भेजा। जो नौकरी हाथ से गई, वो किसी का सपना थी, किसी की जरूरत और किसी के शादी की गारंटी।
ये लोग लगभग एक महीने से छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में शहर की भीड़ से करीब 25 किलोमीटर दूर तूता गांव में धरने पर बैठे हुए थे। लेकिन नगरी निकाय चुनाव की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लग गई। जिसके चलते इन बी.एड कैंडिडेट्स को अपना धरना बंद करना पड़ा।
हालांकि इनका कहना है कि आचार संहिता खत्म होते ही ये सभी लोग फिर से धरने पर बैठेंगे। इन शिक्षकों का दर्द जानने हम कुछ दिन पहले रात दो बजे तुता पहुंचे। जहां ये खुले आसमान के नीचे, ठंडी हवाओं के बीच 12 डिग्री टेम्प्रेचर में दिन भर की थकान के बाद गहरी नींद में सोए हुए थे। कुछ जमीन पर पड़े थे और कुछ एक बड़े से चबूतरे पर।