मिथलेश वर्मा/बलौदा बाजार
नेशनल लोक अदालत को “सहज, सरल, सुलभ और सस्ता न्याय” कहा जाता है क्योंकि यह न्याय पाने का एक ऐसा माध्यम है जहाँ तेजी से, कम खर्च में और बिना जटिल कानूनी प्रक्रियाओं के मामलों का निपटारा किया जाता है।नेशनल लोक अदालत का उद्देश्य लंबित मामलों का निपटारा करना और विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना है, लेकिन बलौदा बाजार जिले में इसका दुरुपयोग किए जाने का मामला सामने आया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल की कप्तानी वाली पुलिस टीम लोक अदालत के नाम पर खुद चालान काटकर केस बढ़ाने में जुटी हुई है।
विशेषकर ट्रैफिक पुलिस लोक अदालत के नाम पर पर्चा काट रही है। मजे की बात तो यह हैं कि इस चालानी कार्रवाई में टीआई मौजूद ही नहीं होते, उनके नाम का पर्चा प्रधानआरक्षक और आरक्षक काट रहे हैं। वैसे ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोक अदालत का उद्देश्य लोगों को प्रताड़ित कर सरकारी खजाना भरना है या लोगों को न्याय दिलाना है?
लोक अदालत में ऐसे तमाम मामलों का निपटारा किया जाता है जिसमें दो पक्षों के बीच आपसी रजामंदी हो जाए। क्योंकि लोग अदालत में हुए फैसले में ना तो कोई जीतता है और ना ही कोई हारता है। सभी पक्ष हंसी-खुशी मामले का निपटारा करते हैं, लेकिन इसके विपरीत देखें तो बलौदा बाजार जिले में लोक अदालत का उद्देश्य पूरी तरह से बदलता नजर आ रहा है। क्योंकि जिले की पुलिस जबरन चालान काटकर नए केस बढ़ाने में जुटी हुई है। मजदूरों और ग्रामीणों से डरा-धमका कर, डंडे का भय दिखाकर लोक अदालत के नाम पर पैसे वसूले जा रहे हैं, जिससे आम जनता में नाराजगी है।
ग्रामीण और मजदूरों को बनाया जा रहा है शिकार
दिनभर की दिहाड़ी मजदूरी का काम करके गांव की ओर लौट रहे मजदूरों और ग्रामीणों को विशेष का ट्रैफिक पुलिस के जवान शिकार बना रहे हैं। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सोमवार की शाम 6 बजे बिलासपुर (लटुवा) रोड में शुक्लाभाठा मोड़ पर देखने को मिला। जहां तीन ट्रैफिक पुलिसकर्मी प्रधान आरक्षक महेंद्र कुमार कोर्ते, आरक्षक प्रमोद कुमार मांजरे और आरक्षक कृष्ण कुमार पटेल
ने सड़क पर चलते वाहनों को अचानक रोकना शुरू कर दिया। पीड़ित ग्रामीणों का कहना है कि जिनके पास सभी दस्तावेज पूरे थे, उन्हें भी कोई न कोई बहाना बनाकर चालान थमा दिया गया। जो लोग चालान भरने से इनकार कर रहे थे, उन्हें धमकाया गया और अदालत का भय दिखाकर वसूली की गई। इस कार्रवाई में कई मजदूरों का पूरा दिनभर का मेहनताना पुलिस की जेब में चला गया।
विरोध करने वालों पर बरपा कहर
अंधेरे में चल रही ट्रैफिक पुलिस के जवानों की कार्रवाई का जब लोग विरोध करने लगे तो उन्हें डंडे का डर दिखाया जा रहा था। कई लोगों के साथ गाली-गलौज और बदसलूकी भी की गई। प्रताड़ना के कहर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मज़दूरी कर घर लौट रहे गरीब मजदूरों की दिनभर की कमाई पुलिस के चालान की भेंट चढ़ गई।
इन पुलिस कर्मियों पर लगा गुंडागर्दी करने का आरोप
प्रधान आरक्षक महेंद्र कुमार कोर्ते, आरक्षक प्रमोद कुमार मांजरे और कृष्ण कुमार पटेल पर ग्रामीणों के साथ बदसलूकी करने, गाली-गलौज करने और डंडे का भय दिखाकर पैसे वसूलने के आरोप लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बिना वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में अंधेरी सड़क पर तीनों जवान खड़े होकर बलौदा बाजार से मजदूरी कर घर लौट रहे ग्रामीणों को लोक अदालत के नाम वाला चालान काटा गया।
पत्रकार ने उठाए सवाल, तो खुद बन गए शिकार!
इस अवैध वसूली का पर्दाफाश तब हुआ जब पत्रकार चंद्रकांत वर्मा ने पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए। उन्होंने ट्रैफिक पुलिसकर्मियों से पूछा कि बिना ट्रैफिक इंस्पेक्टर (TI) की मौजूदगी के चालान कैसे काटा जा सकता है? इसपर पुलिसकर्मियों ने उन्हें ही धमकाना शुरू कर दिया और अदालत में घसीटने की धमकी दी। इतना ही नहीं, बिना हेलमेट घूम रहा है बोलकर उनके ऊपर 500 रुपये का चालान काट दिया। काटे गए चालान में स्पष्ट लोक अदालत लिखा हुआ है। इसका मतलब साफ है कि यह पूरी कार्रवाई लोक अदालत में सिर्फ केस बढ़ाने के लिए की जा रही थी, जिससे लोक अदालत में ज्यादा से ज्यादा मामले पहुंचे और पुलिस को अवैध वसूली करने का मौका मिले।
वसूली करने मिला वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण
बताया जा रहा है कि जिले के कप्तान के आदेश पर पुलिस चेकिंग प्वाइंट लगा रही है। इस वसूली अभियान का उद्देश्य ही लोक अदालत में ज्यादा से ज्यादा मामले पेश करना है। यही कारण है कि प्रधान आरक्षक महेंद्र कुमार कोर्ते, आरक्षक प्रमोद कुमार मांजरे और कृष्ण कुमार पटेल लोगों से बदसलूकी कर खुलेआम वसूली कर रहे हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी
जब इस घटना पर ट्रैफिक डीएसपी अमृत कुजूर से सवाल किया गया, तो उन्होंने चौंकाने वाला बयान दिया—
उन्होंने कहा कि कौन चालान कर रहा मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, मैं गिरौदपुरी मेले की ड्यूटी पर हूं!”
वहीं, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) हेमसागर सिदार ने कहा कि “वे मामले की जांच कराएंगे और पता लगाएंगे कि बिना टीआई (Traffic Inspector) के चालान कौन कर रहा था?”
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि, अगर जिले के बड़े अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है, तो क्या पुलिस पूरी तरह बेलगाम हो गई है? क्या निचले स्तर के पुलिसकर्मी खुद फैसला कर रहे हैं कि किसे लूटना है? अगर यह पुलिस की “आधिकारिक नीति” नहीं है, तो दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?
संपादक टिप्पणी
यूं तो लोक अदालत का उद्देश्य है “लंबित मामलों का निपटारा करना और विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना, लेकिन बलौदाबाजार पुलिस ने इस उद्देश्य को ही पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। अब लोक अदालत का नाम लेकर गरीबों से जबरन वसूली हो रही है, मजदूरों का शोषण किया जा रहा है और पत्रकारों को धमकाया जा रहा है।
लोक अदालत का असली मकसद होता है-
विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना है। आम जनता को शीघ्र और सुलभ न्याय देना।
छोटे-मोटे मामलों को जल्दी सुलझाना। कोर्ट पर बढ़ते केस का भार कम करना। लेकिन बलौदा बाजार की पुलिस लोक अदालत को गरीबों से वसूली करने का जरिया बना लिया है। अब लोक अदालत के नाम पर बिना वजह चालान काटकर पैसे वसूले जा रहे हैं। ग्रामीण, मजदूरों के साथ साथ पत्रकारों को धमकाया जा रहा है। अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो न केवल जनता का विश्वास कानून व्यवस्था से उठ जाएगा, बल्कि लोक अदालत जैसी न्यायिक पहल की छवि भी धूमिल हो जाएगी। इस मनमानी से न्यायालय और न्यायाधीशों की छवि भी प्रभावित होने से अछूता नहीं रह पाएगा। अब बड़ा सवाल है कि आखिर पुलिस कब तक गरीबों का शोषण करती रहेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू की गई लोक अदालत जैसी महत्वपूर्ण न्यायिक पहल को बदनाम करने वाली इस हरकत ने पूरे न्यायिक तंत्र पर सवाल खड़ा कर दिया है।
क्या गरीबों को लूटने के लिए बनी है लोक अदालत?
लोक अदालत गरीबों और मजदूरों के लिए न्याय का आखिरी सहारा होती है। लेकिन जब उसी लोक अदालत के नाम पर गरीबों और मजदूरों को लूटा जाने लगे, तो न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। अगर इस मामले पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो क्या जनता लोक अदालत पर भरोसा कर पाएगी? अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर दोषियों पर कार्रवाई करता है या फिर पुलिस की यह मनमानी यूं ही ढाक के तीन पात की तरह जारी रहेगी। हालांकि जनता का आक्रोश जिस तरह से पुलिस के खिलाफ बढ़ रहा है वह बहुत बुरा परिणाम देने वाला है, बलौदा बाजार पहले ही पुलिस के गलत कार्रवाई का परिणाम भुगत चुका है, इसके बाद भी पुलिस के अधिकारी कर्मचारी अपनी हरकतों से बाज आने का नाम नहीं ले रहे हैं। जनता की मांग है कि दोषी पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई हो जिससे मिशाल पेश हो, क्योंकि पुलिस की इस जबरदस्ती से जनता में भारी नाराजगी है। स्थानीय लोगों और ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि ऐसे पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई हो और लोक अदालत के नाम पर चल रही इस जबरन वसूली को तुरंत रोका जाए। बिना ट्रैफिक इंस्पेक्टर (TI) के काटे गए सभी चालानों की जांच हो।